Tuesday, December 4, 2012

कुछ तो शर्म करो केजरीवाल: सिद्धार्थ मिश्र‘स्वतंत्र’

अपने विवादास्पद खुलासों से आये दिन नेताओं की नींद उड़ा देने वाले केजरीवाल आज एक पार्टी के संस्थापक हो गये हैं । ऐसे में देश से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर उन्हें अपना रूख भी स्पष्ट करना होगा । कुछ दिनों पूर्व अपने एक प्रकाशित लेख में मैनें केजरीवाल के मंसूबों की बात की थी । खैर मेरा वा ेलेख कई सेक्यूलर भाइयों को नागवार गुजरा । बहरहाल जहां तक मेरा प्रश्न है तो मैं ऐसी गुस्ताखियां और भी करूंगा । भाई लोग पत्रकारिता का मूल गुण धर्म यही होता है । शहद में लिपटे प्रश्न नहीं बल्कि देश के यथार्थ से जुड़े चुभते हुये सवाल जो सोचने पर मजबूर कर दें । ऐसा करना गलत भी नहीं है । यदि आप लोकतंत्र में विश्वास करते हैं तो लोकतंत्र की अवधारणा का मूल है स्वस्थ बहस । इसी अवधारणा के नाम पर बुखारी,अरूंधती राय जैसे लोग यदि देशद्रोही बयान दे सकते हैं तो क्या मैं अपनी बात नहीं रख सकता । बहरहाल यहां इतनी बातें रखने का प्रयोजन सिर्फ यही है कि अब वक्त आ गया है कि दूसरों पर कीचड़ उछालने वाले केजरीवाल जी अपने गिरेबां में झांक कर देखें ।
अतः केजरीवाल जी और उनके चाहने वालों से विनम्र अनुरोध है कि मेरे प्रश्नों को अन्यथा न लें और इनके समीचीन उत्तर देने का प्रयास करें । वैसे भी प्रश्न पूछने का कापीराइट अधिकार सिर्फ केजरीवाल जी के पास ही नहीं है । जहां तक मेरे परिचय का प्रश्न है तो मैं भी इस देश का आम आदमी हूं । हां हांलाकि मेरी टोपी पर मैं आम आदमी हूं नहीं लिखा है । लिखा भी कैसे जाता मेरे पास इतनी पूंजी भी तो नहीं कि केजरीवाल जी मुझे टोपी पहनाते । खैर अब बात प्रश्नों की जो निम्नलिखित हैं ।
1.    आप का ये भ्रष्टाचार वाला फार्मूला कहीं अमेरिका की देन तो नहीं है ?
आमजन को बता दूं कि माननीय केजरीवाल जी फिलहाल जिस एनजीओ कबीर से जुड़े हैं उसे अमेरिका की फोर्ड फाउंडेशन से सन 2005 में 1,72,000 अमेरिकी डालर और पुनः 2009 1,17,000 हजार अमेरिकी डालर दान में मिले हैं । इस कारण ही तमाम राजनीतिक दल केजरीवाल के अभियान को यूरोप और अमेरिका से प्रेरित बताते हैं ।
ज्ञात हो कि ब्रिक में शामिल चारों देशों ब्राजील,रूस,भारत,चीन ने वर्ष 2010 में विश्व बैंक से इतर अपना एक अलग बैंक खड़ा करने की घोषणा की । इसी के बाद से चारों देशों भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलनों का जन्म हुआ । वैसे भी फोर्ड अथवा कोई भी अन्य विदेशी संस्था स्पांसर करने से पूर्व अपने हितों का ध्यान अवश्य रखती है । अब ये हित क्या है ये आप सोचीये?
2.    देश की बात करने के बावजूद भी चरमपंथियों और अलगाववादियों के पाले में बैठना क्या साबित करता है?
3.    क्या प्रशांत भूषण की तरह आप भी काश्मीर को देश का हिस्सा नहीं मानते?
4.    अगर मानते हैं तो आप ने इस मामले पर अपने देश के वजूद से जुड़े इस प्रश्न पर अपने विचार क्यों नहीं रखे?
5.    बांग्लादेशी घुसपैठ और मुस्लिम तुष्टिरण पर आपकी क्या राय है?
6.    भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से लेकर पार्टी स्थापना तक का ये सफर क्या अन्ना के साथ विश्वासघात नहीं है ?
7.    क्या टोपी लगाने से कोई भी आम आदमी हो जाता है?
8.    मनमोहन सिंह सरकार द्वारा 2010 में गठित लोकपाल समिति में आपने लोकपाल की पात्रता को मैगसेसे पुरस्कार से क्यों जोड़ा ?
9.    क्या आप मैगसेसे पुरस्कार को आम आदमी के लिये सुलभ मानते हैं ?
10.     अंततः लोकपाल पद क्या विदेशी पुरस्कारों से तय किये जाने चाहिये ?
प्रश्न और भी हैं लेकिन फिलहाल इतने ही । जवाब तो आपको आज नही ंतो कल देने ही पड़ेंगे क्योंकि टोपी पहनने और पहनाने दोनों ही प्रकियाओं में अविश्वास रखने वाले एक विशुद्ध आम आदमी का प्रश्न है । मैं तो सिर्फ यही कहूंगा कि अगली बार कीचड़ उछालने से पहले केजरीवाल को थोड़ी सी शर्म तो जरूर करनी चाहीये क्यांेकि कई सवालों को अब तक आप के जवाबों का इंतजार है । अंततः इन सारी बातों को देखकर कुछ पंक्तियां याद  रही हैं:
सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में हैं,
देखना है...................
ओ रे बिस्मिल काश आते आज तुम हिन्दोस्तां,
देखते की मुल्क सारा है टशन में थ्रिल में है,
हाथ की खादी बनाने का जमाना लद गया ,
आज तो चड्ढ़ी भी सिलती इंग्लिशों की मिल में है...........