Wednesday, December 24, 2014

सत्ता का ऊँट किस करवट बैठता है?-- सिद्धार्थ मिश्र"स्वतंत्र"

सत्ता का ऊँट किस करवट बैठता है?-- सिद्धार्थ मिश्र"स्वतंत्र"
सियासी समझबूझ भी कमाल की चीज़ है।अंतिम पलों मे परिणाम परिवर्तित हो जाते हैं।इसकी बानगी आज समाचार पत्रों मे देखने को मिली.अमर उजाला मे प्रकाशित एक खबर के अनुसार कुर्सी की दौड़ मे उमर अब्दुल्ला बने गेम चेंजर। गौरतलब है की चुनावी परिणाम भले ही उमर साहब के अनूकूल न रहे हों,पर वे भी अनुभवी सियासतदान हैं,खंडित जनादेश के बीच निर्दलीय और छोटे दलों को साधकर भाजपा का सरकार बनाने का दावा सबसे बड़े दल के रूप मे उभरी  पी.डी.पी के माथे पर शिकन डाल रहा है। इस मौके का लाभ उमर साहब क्यो न उठाएं,तो उन्होने एक दोतरफा सियासी दांव खेल दिया। वे एक ओर पी.डी.पी को सरकार बनाने के लिये समर्थन से भी इंकार नहीं कर रहे तो दूसरी ओर भाजपा से भी संपर्क बनके चल रहे हैं।ऐसे मे मेहबूबा मुफ्ती की नींद उड़नी लाजिमी ही है। आज शायद मुफ्ती महोदया को एक बात समझ आ गयी की सियासत मे कुछ भी मुफ्त नहीं होता। जैसा की भाजपा के अमित जी ने कहा था की वे सारे रास्ते खुले रख रहे हैं,उनके इस कथन का सही निहितार्थ समझा उमर साहब ने। उन्होने भी दरवाजे खोल दिये,इन दरवाजों का एक सिरा केन्द्रीय मंत्रिमंडल तक पहुचता है,तो दूसरा सिरा प्रदेश की सियासत मे प्रभावी स्थान दिला सकता।अब यही तो सियासत की विशेषता है,मेहबूबा जीत के भी नहीं जीती,उमर हार के भी नहीं हारे।राजनीति ऐसे ही बाज़ीगरों का अखाडा है। मैं क्या कहूँ,बस इतना कहूंगा ,
रहिमन चुप हो बैठिये देख दिनन के फेर...
सांस रोककर आप भी इस सियासी नाटक का भरपूर आनंद लीजिये,सत्ता का ऊँट किस करवट बैठता है>?
                                                                                         

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