Wednesday, October 19, 2011

भ्रष्टाचार और बड़बोलेपन की शिकार कांग्रेसनीत यूपीए सरकार

अन्ना हजारे द्वारा उठाया गया भ्रष्टाचार का मुद्दा इतना उग्र रूप धारण कर लेगा यह शायद ही किसी ने सोचा होगा। वर्तमान में यूपीए सरकार चारों तरफ से भ्रष्टाचार के आरोप में घिरती दिखाई दे रही है। टूजी स्पेक्ट्रम घोटाले में वित्त मंत्रालय के नोट ने ये साबित कर दिया है कि, इस घोटाले की जानकारी प्रधानमंत्री समेत तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम् समेत सभी को थी और कहीं न कहीं सरकार के बड़े नेता भ्रष्टाचार में संलग्र हैं। स्पेक्ट्रम घोटाला ही क्यों अपने सात वर्षों के कार्यकाल में यूपीए सरकार ने भ्रष्टाचार की एक नई परम्परा की शुरूआत की है। राष्ट्रमंडल खेलों में घोटाला, आईपीएल घोटाला, आदर्श हाउसिंग सोसायटी घोटाला, सांसदों की खरीद फरोख्त समेत अनेकों मामले ऐसे हैं जो यह साबित करते हैं कि यूपीए सरकार आकंठ घोटालों में संलिप्त रही है। उस पर प्रधानमंत्री की मासूम टिप्पणी, कि मुझे चिदम्बरम् की विश्वसनियता पर कोई शक नहीं है और न्यायपालिका अपने दायरे में रहकर कार्य करे, क्या साबित करती है ?

खैर जो भी हो कमर तोड़ मंहगाई से जूझ रही जनता के समक्ष अब केन्द्र सरकार की विश्वसनीयता तार-तार हो गई है। स्पेक्ट्रम घोटाले का सच उजागर होने के बाद भी पी.चिदम्बरम् की तरफदारी कर रहे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ईमानदारी भी अब संदेह के घेरे में आती जा रही है। 1.75 लाख करोड़ के स्पेक्ट्रम घोटाले पर बीते बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय ने तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम् की भूमिका पर भी सवाल उठाये थे। सोचने वाली बात है कि इतना बड़ा घोटाला दयानिधि मारन और ए.राजा क्या अपने दम पर कर सकते हैं ? इस सन्दर्भ में वर्तमान वित्त मंत्री प्रणव मुखर्जी के पत्र ने सत्ताधीशों के आपसी मिली भगत को सामने ला दिया है। अपने पत्र में उन्होंने यह कहा है कि अगर चिदम्बरम् चाहते तो वो स्पेक्ट्रम की नीलामी करा सकते थे। ज्ञात हो टू जी स्पेक्ट्रम आवंटन को लेकर चार बैठकें हुई थीं, इनमें से अंतिम बैठक में ए.राजा के साथ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भी उपस्थित थे। ये बाते इस ओर इशारा कर रही है कि प्रधानमंत्री भी इस घोटाले से अनभिज्ञ नहीं थे। बीते लोक सभा चुनावों में मनमोहन सिंह को कमजोर प्रधानमंत्री कहे जाने से आहत मनमोहन सिंह क्या अब सशक्त प्रधानमंत्री कहे जा सकते हैं ? उनके एक नहीं अनेकों निर्णय यह साबित करते हैं कि सत्ता की डोर उनके हाथ में न होकर किसी और के हाथ में है। अन्यथा क्या केन्द्रीय सर्तकता आयुक्त के पद पर किसी दागी की नियुक्ति कोई ईमानदार प्रधानमंत्री कर सकता है। वास्तव में कांग्रेस पार्टी की सत्ता प्रारंभ से दस जनपथ से चलाई जाती रही है, और गांधी परिवार के निर्णय ही सर्वमान्य होते हैं। एक लोकतांत्रिक देश को चलाने के लिये ऐसी पार्टी की आवश्कता होती है, जो स्वत: लोकतंत्र में विश्वास करती हो। मगर अफसोस सत्ता के शीर्ष पर बैठी कांग्रेस प्रारंभ से गांधी परिवार का अपना पालनहार मानती आ रही है, और उन्हीं के इशारे पर नाचती रही है। स्व. अर्जुन सिह जीवन पर्यन्त गांधी परिवार की खुशामद में बयानबाजी करते रहे, उनका स्थान अब दिग्विजय सिंह ने ले लिया है। दिग्विजय जी गाहे-बगाहे अमर्यादित टिप्पणीयाँ करके सुर्खियों में बने रहते हैं, चाहे वो भगवा आतंकवाद के विरूद्ध हो, अथवा अन्ना हजार जैसे उत्कृष्ट समाजसेवी के विरूद्ध हो। वैश्विक स्तर पर भगवा आतंकवाद उनकी ही खोज है, इसके अलावा सिमी और संघ की तुलना भी सिर्फ वही कर सके हैं। पूरा विश्व जब तालिबान प्रायोजित आतंकवाद को कोस रहा था तो उन्हें भगवा आतंकवाद का डर सता रहा था। उनकी प्रशंसा में मुझे यह पंक्तियां याद आ रही हैं जो काबिले गौर हैं।

कैसी है ये त्रासदी, कैसा है संयोग
लाखों में बिकने लगे, दो कौड़ी के लोग

पहले आतंरिक सुरक्षातंत्र की विफलता का सेहरा चिदम्बरम् के सिर बांधने वाले दिग्विजय जी आजकल उनकी तरफदारी कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि ‘‘भाजपा चिदम्बरम् के पीछे सिर्फ इसलिये पड़ी है, क्योंकि वह संघी आतंकवाद के विरूद्ध कार्रवाई कर रहे हैं।’’

अब सोचने वाली बात यह है कि भ्रष्टाचार के दल-दल में आकंठ डूबी यूपीए सरकार के ये कद्दावर ध्वजवाहक  क्या किसी पर उंगली उठाने लायक हैं। जवाब है नहीं, लेकिन देखने वाली बात यह है कि बड़बोलेपन का शिकार इन कांग्रेसी नेताओं की मति कब सुधरेगी। कल तक वैश्विक स्तर पर सर्वमान्य भारत की गिनती अब भ्रष्टाचारी राष्ट्र के रूप में होने लगी है। इसका सीधा असर प्रधानमंत्री की वांशिगटन यात्रा में देखने को मिला है। आखिर कब तक धर्म, उन्माद और तुष्टिकरण की राजनीति करते रहेंगे ? कब तक शहीदों के बलिदान को धिक्कारा जाता रहेगा? कब तक पाला-पोसा जाता रहेगा आतंकवाद और तुष्टीकरण को? अफजल गुरु और कसाब को धर्मान्ध कठमुल्लों की खुशी के लिए बचाने वाले ये कतिपय लोग क्या राष्ट्रद्रोही नहीं है? देश की आम जनता के विकास में बाधक ये भ्रष्टाचारी कब तक लूटते रहेंगे इस देश को? कब होगी कार्रवाई कालाधन स्विस बैंक में जमा करने वालों के विरुद्ध?

अनेकों प्रश्न है जो प्रत्येक भारतीय के मन को कचोटते रहते हैं। क्या यही मूल्य है भगत, आजाद सरीखे क्रांतिकारियों की कुर्बानी का? कहीं नक्सलवाद की समस्या, कहीं इस्लामी आतंकवाद की समस्या, कश्मीर से कन्याकुमारी चहुंओर समस्याएँं मुंह बाए खड़ी है। उस पर कमरतोड़ महँगाई ने अर्थशास्त्र विशेषज्ञ प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की नेतृत्व क्षमता पर निश्चित रूप से सवालिया निशान लगा दिए है। अब वक्त है ये सोचने का कि क्या हमारा भविष्य इस सरकार के हाथों में सुरक्षित है? अंतत:

न संभलोगे तो मिट जाओगे हिन्दोस्ताँ वालों,
तुम्हारी दास्ताँ भी न होगी जहाँ की दास्तानों में

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