Sunday, November 11, 2012

राम के नाम पर राजनीति बंद हो: सिद्धार्थ मिश्र‘स्वतंत्र’

विजयादशमी पर्व मनाकर हम प्रकाश पर्व दीपावली मनाने की ओर बढ़ चले हैं । प्रकाश पर्व दीपावली अर्थात असत्य पर सत्य की विजय एवं समस्त आसुरी शक्तियों का संपूर्ण शमन कर अयोध्या लौटे प्रभु श्रीराम की अगवानी का पर्व । प्रभु के अयोध्या आगमन पर नगरवासियों ने दीप जलाकर उनका स्वागत किया । ये परंपरा आज भी बदस्तूर जारी है,प्रभु के आगमन में दीपों के प्रयोग के कारण ये पर्व दीपावली के रूप में जाना गया । इस बात को अगर वैदिक सूक्तियों में ढ़ूंढ़ने की कोशिश करें तो पर्व इन पंक्तियों में परिलक्षित होता है ।
असतो मा सद्गमय,तमसो मा ज्योतिर्गमय,मृत्यो मामृत ंगमय
अर्थात हे प्रभु मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो,अंधेरे से प्रकाश की ओर ले चलो तथा मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो । इस प्रसंग को यदि हम दीपावली की कसौटी पर रखकर देखें तो इसके उद्देश्य और भी स्पष्ट हो जाएंगे । यथा इस पर्व के मूल में है सत्यमेव जयते अर्थात धर्म की अधर्म पर विजय । राम की रावण पर विजय इस बात का प्रतीक मात्र है कि आसुरी शक्तियां चाहे कितनी भी प्रबल हों अंततः वे सत्यनिष्ठ व्यक्ति से पराजित होती हैं । दूसरी पंक्तियों की बात करें तो वो तम से प्रकाश की ओर बढ़ने की प्रेरणा देती हैं । तम अर्थात अंधकार ये अंधकार सिर्फ रात का प्रतीक मात्र नहीं है । तम प्रतीक है हमारी समस्त चारित्रिक दुर्बलताओं का । जिनमें झूठ,ईष्र्या,असत्य,सभी प्रकृति के अनाचार समाहित हैं । इस बात को अगर आसान शब्दों में देखें तो अपराध अक्सर रात में सिर उठाता है अर्थात जब समाज तम या अंधेरे से घिरा हो । इसी तम के शमन की इच्छा से अयोध्यावासियों ने प्रतीकों के रूप में दीप जलाकर राम के नगर आगमन पर रात को दीपों के उजियारे से भर दिया था । तीसरी पंक्तियों की बात करें अर्थात मुझे मृत्यू से अमरता की ओर उन्मुख करो । यहां अमरता से आशय हर काल में जीवित रहने से नहीं है । इन पंक्तियों का संदेश स्पष्ट है कि जो व्यक्ति अपने सदाचार से अपने मन के संपूर्ण विकारों का शमन कर डालता है,वही अजेय व्यक्ति अमर हो जाता है । अमर अर्थात वह हर काल में कथाओं और किंवदंतियों के रूप में समाज में मौजूद रहेगा । अब ध्यान दीजियेगा कि कलयुग में इस पर्व को मनाने का आशय सिर्फ इतना है कि हम हमारा ये समाज कहीं न कहीं आज भी राम के अस्तित्व को स्वीकार करता है । हमारे वेद पुराणों और उपनिषदों में वर्णित अमरता का अर्थ इससे इतर कुछ और नहीं है ।
स्मरण रहे कि इन सभी मान्यताओं को अपने जीवन में समाहित करने के कारण ही हम दशरथ पुत्र राम को मर्यादापुरूषोत्तम प्रभु श्री राम कहते हैं । ये उपाधि प्राप्त करने के लिये उन्हें अपना संपूर्ण जीवन मानवता के कल्याण में गुजारा । आज के परिप्रेक्ष्यों में अगर देखें तो इस प्रकार का निरपेक्ष जीवन बिताना अब असंभव हो चुका है । मेरे कहने का अर्थ सिर्फ इतना कि व्यक्ति अपनी खुद की समस्याओं से इतना घिरा है कि उसे दूसरों के दुःख से कोई प्रयोजन नहीं रह गया है । यह भी धु्रव सत्य है कि हर युग की जीवन शैली अलग होती है । ये युग वास्तव में आत्मकेंद्रित व्यक्तियांे का युग है । आत्मकेंद्रित अर्थात किसी भी कीमत पर निज स्वार्थों की पूर्ति । इसी भावना के वशीभूत होकर लोगों ने राम का राजनीतिकरण शुरू किया । इस बात का श्रेय निश्चित तौर पर भाजपा को ही जाता है । आपको याद होगा राम मंदिर आंदोलन और इसका हश्र आज किसी से भी छुपा नहीं है । राम का लेकर उत्तर प्रदेश समेत केंद्र की सत्ता हथियाने के बाद भाजपा ने अपने शासन के वर्षों में एक बार भी राम का नाम लेना उचित नहीं समझा । अंततः बिसरा दिये गये श्रीराम । इसका सीधा सा अर्थ है कि भाजपा के लिये राम का नाम वास्तव में एक राजनीतिक मुहावरे से ज्यादा कुछ नहीं था । एक ऐसा मुहावरा जिसका उपयोग सिर्फ चुनावी जनसभाओं में जनता के मनोभावों को छूकर समर्थन प्राप्त करने से ज्यादा कुछ नहीं है । आपको याद होगा कि राम मंदिर निमार्ण पूरे देश से लोगों ने अपनी सामथ्र्य भर पैसे चंदे या दान के रूप विभिन्न हिंदू वादी संगठनों को दिये थे । कहां गये वो पैसे ? उन पैसों का क्या उपयोग हुआ? यदि उपयोग मंदिर निर्माण में नही ंतो किसके पास हैं वो पैसे ?अंतिम प्रश्न देश के आमजन की भावनाओं के साथ इस तरह का विश्वासघात कहां तक जायज है ?
अभी और भी कहे और अनकहे सवाल हैं,जो आमजन के जेहन में दर्ज हैं । ये बातें यहां रखने का मेरा प्रयोजन सिर्फ इतना ही है कि राम भले ही भारत की गौरवपूर्ण अतीत का प्रतीक हों लेकिन राजनीति में उनका उपयोग सिर्फ सत्ता प्रात्त करने तक सीमित है । ऐसे लोग क्या राम का नाम लेने के अधिकारी हैं?ध्यान दीजियेगा कि ये हिंदू धर्म की उदारता ही कही जायेगी वो रोजाना ही राम पर प्रश्नचिन्ह सहन कर लेते हैं । अभी हाल ही में भाजपा के वरिष्ठ नेता राम जेठमलानी ने राम को बुरा पति बताया । उनका मानना था कि राम ने बहकावे में आकर सीता को घर से निकाल दिया । उनके इस बयान से उनके दर्शन और राम के प्रति उनकी समझ को बखूबी समझा जा सकता है । ऐसे सभी लोगों से मेरा अनुरोध है कि वे सिर्फ एक बार अपने पूर्वाग्रहों का त्याग कर रामायण को पढ़ें उन्हे उनके इस तरह के सभी कुतर्कों के जवाब मिल जाएंगे । यदि वे ये भी नहीं कर सकते तो आसान शब्दों में तुलसीदासजी द्वारा रचित रामचरित मानस का अध्ययन आप सभी की समस्त समस्याओं का निराकरण हो जायेगा । यदि फिर भी नहीं होती तो आपकी मनोदशा को गोस्वामी जी ने कुछ यूं बताया है:
जाकी रही भावना जैसी,हरि मूरत देखी तिन तैसी
अर्थात राम का व्यक्तित्व तो एक ही था लेकिन रावण और विभीषण के स्तर पर अंतर आ जाता है । राम पर उठने वाले इस तरह के प्रत्येक प्रश्न वास्तव में आपके मानसिक स्तर के द्योतक हैं । खैर बयान एक और प्रतिक्रियाएं अनेक अभी रात में वरिष्ठ महिला पत्रकार ने न्यूज चैनल के दरबार मेें बैठकर राम को कोसना शुरू कर दिया । उनका कहना था राम का ये फैसला उनकी सामंती मानसिकता को दर्शाता है । मेरा प्रश्न है आपके ये सतही कटाक्ष किस सतही मानसिकता को दर्शाता है?राम का तो पूरा जीवन तो एक विचारधारा एवं पत्नी के प्रति एकनिष्ठ रहा है । क्या आप अपने एकनिष्ठ जीवन का दावा कर सकती हैं? ईमानदारी से सोचियेगा कि कहीं आप फिजा या मधुमिता की राह पर नहीं चल पड़ी हैं ? विचारणीय प्रश्न है हिंदू धर्म के आधार पुरूष राम पर जिस तरह के कटाक्ष किये जा रहे हैं क्या वैसा आप अन्य धर्मों के महापुरूषों के साथ कर सकते हैं? यदि नहीं कर सकते तो हिंदू धर्म की सहिष्णुता का फायदा मत उठाइये नहीं तो वास्तव में राम का एक रूप उग्र भी है जो समस्त विधर्मियों का नाश करने में पूर्णतः सक्षम है । ये तो कथा वाचकों का चमत्कार है कि वो हमें सिर्फ राम के प्रेम और विरह की कथाएं सुनाते आ रहे हैं । रामचरित मानस में प्रभु श्रीराम के मुख से वर्णित एक सूक्ति वाक्य है ‘भय बिन होई ना प्रीति ’।यहां इतनी बातों को यहां रखने का प्रयोजन सिर्फ इतना है कि आने वाले दो दिनों के बाद ही प्रकाश पर्व दीपावली है । अतः आइये इस दीपावली पर राम के राजनीतिकरण की बजाय उनके उन्नत चरित्र को समझने की कोशिश करें ।
अंततः होइहैं वो ही जो राम रचि राखा,को करि तर्क बढ़ावहीं साखा ।

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