Monday, November 19, 2012

वैज्ञानिक एवं धार्मिक आस्था का महापर्व है छठ पूजा: सिद्धार्थ मिश्र‘स्वतंत्र’

लोकआस्था का महापर्व छठ प्रत्येक वर्ष कार्तिक मास,शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से षष्ठी तिथि के बीच मनाया जाता है । शायद का ये संसार का पहला ऐसा पर्व है जहां उगते सूर्य के बजाय डूबते मार्तंड को अध्र्य दिया जाता है । अन्यथा सामाजिक मान्यताओं के अनुसार तो समाज उगते सूर्य को ही प्रणाम करता है । ऐसी ही कई अन्य अद्भुत संदेशों को स्वयं में समाये ये महापर्व प्रतिवर्ष भारत समेत जावा,मारिशस,त्रिनिदाद सुमात्रा जैसे कई देशों में मनाया जाता है । इस अवसर पर महिलाएं विशेष रूप से भुवन भाष्कर सूर्य से उनके सदृश तेजस्वी पुत्र पाने की कामना करती हैं । अर्थात इस पर्व के मूल में है सुहागिन स्त्रियों द्वारा षष्ठी माता से अपने पुत्र के लिये मंगल की कामना । इस बात को छठ पर्व के अवसर पर गाये जाने वाले  विभिन्न गीतों से भी समझा जा सकता है ।
छठ महापर्व की महत्ता को समझने के लिये हमें विभिन्न ऐतिहासिक संदर्भों का सूक्ष्मता से अवलोकन करना होगा । देवी भागवत के मतानुसार सृष्टि की रचनात्मक एवं क्रियात्मक शक्ति जिन्हे समस्त समस्त सृष्टि का उत्स भी कहा जा सकता है स्वयं सर्वेश्वरी आद्या शक्ति मां दुर्गा हैं । मां के समस्त स्वरूपों के विभाजन में छः मूल रूप हैं इन्हे राधा,मां दुर्गा,मां महालक्ष्मी,मां महाकाली,मां सरस्वती एवं मां चामुण्डा । मां के इन समस्त स्वरूपों को समझने के उपरांत वस्तुतः सृष्टि का कोई भी गूढ़ रहस्य समझने की आवश्यकता नहीं रह जाती । देवी के इन समस्त स्वरूपों में रचनात्मक एवं क्रियात्मक कार्यों का संपादन कराने का श्रेय  उपशक्तियों को जाता है । महामाया दुर्गा की इन्ही उपशक्तियों के बहुविध नामों में सर्वप्रमुख नाम है मां षष्ठी का । अतएव संतान की मंगल कामना से प्रेरित होकर स्त्रियां इस महापर्व को मनाती हैं ।
मता षष्ठी का मुख्य कार्य है संपूर्ण मानव संतति की रक्षा करना । अतः मां षष्ठी का प्रथम पूजन आज भी सनातन धर्मियों द्वारा तब होता है,जब कोई नवजात छः दिन का होता है । अर्थात शिशु की छठी मनाने के मूल में भी मां षष्ठी की पूजा ही छुपी है । चार दिनों तक चलने वाले इस महापर्व की शुरूआत भैया दूज के तीसरे दिन होती है । सांस्कृतिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन को नहा खाय कहा जाता है । इस दिन श्रद्धालु स्त्रियां गंगा नदी में स्नान के उपरांत वहां से लाये पवित्र जल से घर की शुद्धि करती हैं ततपश्चात पश्चात कद्दू की सब्जी के साथ शुद्ध भोजन ग्रहण करती हैं । इस मान्यता के पीछे भले ही गूढ़ हो लेकिन एक सामान्य सा संदेश है लोगों का प्रकृति से जुड़ाव । ध्यातव्य हो आपाधापी के वर्ष के सारे दिन स्त्रियां भले ही नदियांे से दूर रहती हों पर इस एक दिन उन्हे नदियांे की शरण में जाना ही पड़ता है । दूसरे तरीके से देखा जाय तो पूरे विश्व की प्यास बुझाने वाली ये नदियां वास्तव में मातृ स्वरूपा हैं । अतः लोगों को मातृ शक्ति से जोड़े रखने के लिये इस पर्व की पूजा नदियों के तट पर ही की जाती है।
स्मरण रहे कि संपूर्ण सृष्टि का निर्माण मूल रूप से पांच तत्वों से ही हुआ है । इन पंचतत्वों के प्रधान हैं सूर्य देव । सौरमंडल की समस्त गतिविधियों के नियंता हैं अतः षष्ठी पर्व को सूर्य उपासना के साथ सनातन परंपरा में संबद्ध कर दिया गया । पौराणिक रूप से अगर देखा जाये सूर्य पूजन से संयुक्त षष्ठी का सर्वप्रथम साक्ष्य अंगराज कर्ण द्वारा किये गये पूजन के रूप में होता है । चूंकि छठीं शताब्दी में अंग प्रदेश को मगध में मिला लिया गया था अतः इस पूजा के सर्वप्रथम साक्ष्य मगध में ही मिलते हैं । मगध का आशय यहां वर्तमान बिहार से है । बिहार में आज भी ये पर्व सबसे बड़े पर्व के रूप में ख्यातिलब्ध है । इस पूजा के कारण ही मगध प्रदेश प्राचीन काल में पूरे भारत वर्ष को संचालित करता था । आज भी अगर देखा जाय तो भारत की वर्तमान राजनीतिक दशा एवं दिशा इन सूर्य उपासक राज्यों पर केंद्रित है । अर्थात भारतीय राजनीति के परिप्रेक्ष्य में उत्तर प्रदेश एवं बिहार बड़ी धूरी बने हुए हैं । इन सबका श्रेय जाता है भगवान भुवन भाष्कर को । भारत समेत विश्व की अनेक सभ्यताओं में सूर्य को शक्ति का प्रतीक माना गया है ।
जहां तक इस पर्व की वैज्ञानिक मान्यताओं का प्रश्न है तो वो बिल्कुल स्पष्ट है । वैज्ञानिक एवं ज्योतिष शास्त्र के दृष्टिकोण से भी देखा जाये तो षष्टी एक विशेष खगोलीय अवसर है । इस अवसर पर सूर्य पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्द्ध में कंेद्रित होता है ।ऐसे में सूर्य की दूषित किरणों का सीधा प्रभाव मानव के शरीर पर पड़ता है । ध्यान दे ंतो शाम एवं सुबह के समय सूर्य की ये बेधक किरणें श्रद्धालुजन को कोई नुकसान नहीं पहुंचाती । उपरोक्त आधारांे पर अगर देखा जाय तो इस व्रत के पारन एवं पूजन में इन वैज्ञानिक महत्व की बातों को भी समाहित किया गया है । संक्षेप मंे कहा जाय तो अपनी इसी विशिष्टता के कारण ही इस पर्व की वैज्ञानिक महत्ता को भी नकारा नहीं जा सकता ।
वस्तुतः छठ विश्व के प्राचीनतम पर्वों में से एक है । रामायण काल मे मां सीता,महाभारत काल में मां कुंती द्वारा इस व्रत को किये जाने के साक्ष्य हमारे पुराणों में मिलते हैं । इन ओजस्वी माताओं के यशस्वी पुत्रों की गौरव गाथा से हमारा इतिहास भरा पड़ा है । अतः अपने पुत्रों के यशवर्द्धन मंगलकामना से अभिप्रेरित होकर माताएं प्रतिवर्ष इस दुरूह व्रत को करती हैं । संक्षेप में अगर कहा जाये तो आमजन को प्रकृति,आस्था एवं वैज्ञानिक आधारों से जोड़ने वाला महापर्व है छठ ।

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