Monday, August 20, 2012

लोकतंत्र में युवराज एक भद्दा मजाक


                   
‘कांग्रेस कौन कुमति तोहे लागी’ लोकतंत्र और आम आदमी के हित संवर्धन का दम भरने वाली कांग्रेस आरंभ से ही कुमति का षिकार रही है। इसकी बानगी गाहे बगाहे कांग्रेसी नेता देते रहे हैं। फिलहाल यहां चर्चा का विशय कांग्रेस का अलोकतांत्रिक रवैया है। बीते कई दिनों से अखबारों में युवराज के कांग्रेस के उद्धार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने पर चर्चा हो रही है। इस चर्चा को कोई और नहीं कांग्रेस के वरिश्ठ और पुरनिए नेता ही हवा दे रहे हैं। समाचार पत्रों में अक्सर सुर्खियां बटोरते हैं युवराज। कौन हैं ये युवराज? ये युवराज कोई और नहीं राहुल गांधी ही हैं । खैर यहां ये चर्चा करने के पीछे मेरा कोई व्यक्तिगत पूर्वाग्रह नहीं है । अभी इसी सप्ताह के आरंभ में हमने  स्वतंत्रता की 65 वीं वर्शगांठ मनाई है । इस आयु को अगर मानव के जीवन से भी जोड़कर देखें तो ये आयुवर्ग प्रौढ़ता का परिचायक है । जहां तक भारतीय लोकतंत्र का प्रष्न है तो उसे भी आयु के इस सोपान पर मानसिक दक्षता का परिचय देना ही  होगा । अतः अब ये प्रष्न विचारणीय है कि क्या लोकतंत्र में आज भी युवराज की आवष्यकता है? किसी व्यक्ति विषेश को युवराज की उपमा देना मीडिया की मानसिक दासता नहीं है? आजादी के 65 वर्शों के बाद भी क्या हम राजतंत्र को ढ़ो रहे हैं?

बीते वर्श उप्र के विधान सभा चुनावों के दौरान लगभग सभी समाचार पत्रों ने इस तथाकथित युवराज की षान में कसीदे पढ़े । इसकी एक बानगी थी युवराज केा भायी चटनी रोटी ये षीर्शक है उस तस्वीर का जिसमें राहुल को झांसी के एक दलित परिवार में रोटी खाते हुए दिखाया गया है । इस तस्वीर को प्रकाषित किया था , हिन्दी समाचार पत्रों में प्रथम स्थान का दम भरने वाले एक ख्यातिलब्ध समाचार पत्र ने । यहां प्रष्न तस्वीर का नहीं है, प्रष्न है समाचार पत्र के वैचारिक स्तर का । इसमे सिर्फ एक समाचार पत्र का दोश क्यों दें, प्रायः सभी समाचार पत्रों और टीवी चैनलों में इस तरह के षीर्शक आते ही रहते हैं । यानी हमारी पत्रकार बिरादरी ने उन्हे ‘युवराज ’ स्वीकार कर लिया है। क्या ये परंपरा आज भी कुलीनतंत्र का एहसास नहीं कराती ?
अनेकों ऐसे प्रष्न हैं जो अचानक उठ खड़े होते हैं, इस तरह की खबरों को देखकर । जिसका सिर्फ एक ही अर्थ है कि हम आज भी राजतंत्र में जी रहे हैं, क्योंकि उस काल की तरह आज भी ताजपोषी की प्रथा बदस्तूर जारी है । तथाकथित बुद्धिजीवी आज भी पलक पांवड़े बिछाकर युवराज के राज्याभिशेक का जष्न मनाने को लालायित दिखते हैं ।
बहरहाल अगर गहन विवेचना न की जाए तो युवराज का षाब्दिक अर्थ होता है भावी राजा, अर्थात राजा का पुत्र । अगर इस परिभाशा को आज के संदर्भों में देखें तो हम पाएंगे कि राजतंत्र आज भी जिंदा है । न सिर्फ जिंदा है, बल्कि पहले से भी अधिक मजबूत हो गया है । इस परंपरा का ज्वलंत प्रमाण है कांग्रेस का गांधी परिवार । दषकों से इस परिवार की निरंकुष पीढि़यां न सिर्फ पार्टी पे बल्कि समूचे देष पर राज कर रही हैं ।
इस परंपरा की षुरुआत हुई पं जवाहर लाल नेहरु के प्रधानमंत्री बनने से । आजादी के बाद हांलाकि कई विकल्प थे महात्मा गांधी के पास जो षायद नेहरु से लाखों दर्जे बेहतर थे । किंतु उन्होने न जाने किस मनोभाव से प्रेरित होकर सत्ता की बागडोर पं नेहरु को थमा दी । इसके बाद तो ये परंपरा स्व इंदिरा व राजीव से होते हुए आज राहल तक आ पहुंची है । अगर गांधी परिवार के अन्य नामों पर गौर करेें तो षायद वे भारतीयता की थोड़ी बहुत समझ अवष्य रखते थे । मगर जहां तक राहुल का प्रष्न है तो क्षवि आज भी अमूल बेबी की है । उनकी विषेश योग्यता दलित के घर खाना खाने और रात बिताने तक ही सीमित है । ऐसे कई प्रसंग हैं जहां उन्होने चैपालें लगाकर लोगों की समस्याएं सुनी पर नतीेजा वही ढ़ाक के तीन पात ही निकला । अंततः राज्य सरकार के असहयोग का रोना रोकर उन्होने गरीब परिवारों को भाग्य भरोसे छोड़ दिया । अगर वास्तव में वे कुछ करना चाहते हैं तो,उसकी षुरुआत वे अपने संसदीय क्षेत्र अमेठी से करें । कांग्रेस का परंपरागत गढ़ माने जाने वाला उनका ये संसदीय क्षेत्र आज भी विकास के नजरिये पिछड़ा ही है । जहां तक प्रष्न सोनिया गांधी का है तोे निःसंदेह उन्होने अध्यक्ष पद संभालने के बाद कांग्रेस में एक नई जान डाल दी है । कांग्रेस पार्टी  के अंदर उनके इषारे के बगैर एक पत्ता भी नहीं हिलता । पार्टी में उनके प्रभुत्व को गृह मंत्री षिवराज षिंदे के हालिया बयान से जाना जा सकता है । अपने बयान में षिंदे ने सोनिया जी को जिस तरह से महिमामंडित किया वो वास्तव में काबिलेगौर था । वैसे इस तरह के बयान देने की परंपरा कांग्रेस के लिए नई नहीं है । इसके पूर्व भी मप्र के राज्यपाल षिव नरेष यादव ने अपने जनपद में आयोजित उनके खुद के अभिनंदन समारोह में सरेआम सोनिया जी का आभार व्यक्त किया था । अपने बयान में उन्होने कहा था कि सोनिया जी की सिफारिष से मुझ जैसा अदना कार्यकर्ता राज्यपाल बन पाया । एक राज्यपाल के मुंह से निकले ये षब्द क्या साबित करते हैं? क्या कारण है उन्हे अपने अभिनंदन समारोह में सरेआम सोनिया गांधी की चरण वंदना करनी पड़ी? ये सारी बातें इस ओर साफ इषारा करती हैं कि आजादी के बाद आज भी देष में राजतंत्र कायम है । मनमोहन सिंह पर आए दिन डमी प्रधानमंत्री होने के आरोप लगते रहे हैं । इन बातों में सत्यता चाहे जो भी हो पर एक बात स्पश्ट है कि सत्ता की बागडोर आज भी गांधी परिवार ही संभाल रहा है । ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जहां गांधी परिवार देष के कानून व संविधान से भी बड़ा नजर आता है । किसी जमाने में स्वदेषी के प्रबल पक्षधर गांधी परिवार की वर्तमान पीढ़ी आज स्वदेष और स्वदेषी का बहिश्कार करने पर आमादा है । क्या वजह है कांग्रेस अध्यक्षा द्वारा उपचार के नाम पर विदेषों में करोड़ों रुपये फूंकने का ? क्या उनका हमारी चिकित्सा सेवाओं से विष्वास उठ गया है ? या वो कौन सा लाइलाज रोग था जिसका इलाज भारत में संभव नहीं है?
ऐसे अनेकों प्रष्न र्हैं जो अब तक अनुत्तरित हैं । हैरत की बात है कि ये माननीय सोनिया जी ने इस बाबत कुछ भी बताना उचित नहीं समझा । खैर इस घटना से संबंधित एक वाकया याद आ रहा है । पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जब घुटनों की तकलीफ से पीडि़त थे,तो वे भी विदेष जा सकते थे । किंत ु उन्होने मुंबई के एक अस्पताल में षल्य चिकित्सा कराके ये साबित कर दिया कि उन्हे अपने देष की चिकित्सा सेवाओं पर पूरा भरोसा है । उच्च स्तर के लोगों के जीवन से जुड़ी ये छोटी से छोटी घटनाएं आम आदमी के लिए उदाहरण का काम करती हैं । जो भी हो इस प्रसंग का यहां जिक्र करने से मेरा आषय इन दोनों के बीच तुलना करने का नहीं है । ये सभी का व्यक्तिगत विशय है कि वो अपनी चिकित्सा कहां कराता है, किंतु देष के बड़े नेताओं का ये आचरण निष्चित तौर पर आमजन के बीच जबरदस्त प्रभाव रखता है ।
 ब्हरहाल इसके अलावा दर्जनों ऐसे प्रसंग हैं जो ये साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि कांग्रेस लोकतं़त्र में तो कत्तई भरोसा नहीं रखती । फिर चाहे वो सोनिया का सत्ता में अदृष्य दखल हो अथवा स्व इंदिरा गांधी द्वारा लगाया गया आपातकाल हो । जहां तक उत्तरदायित्व का प्रष्न है तो इस कुप्रथा को जीवंत बनाए रखने में गांधी परिवार से ज्यादा जिम्मेदार हैं उनके पिछलग्गू । कौन भूल सकता है कांग्रेसी नेता सिद्धार्थ षंकर रे की ये टिप्पणी  ‘इंडिया इज इंदिरा एण्ड इंदिरा इज इंडिया’ या आज के परिवेष में दस जनपथ की लगातार परिक्रमा करने वाने तथाकथित नेताओं राहुल को भावी प्रधानमंत्री बताना । क्या मजबूरी है दिग्विजय,बेनी प्रसाद वर्मा सरीखे वरिश्ठ नेताओं द्वारा गांधी परिवार की चापलूसी करने की?
वास्तव में कुछ घटिया और चापलूस श्रेणी के नेताओं ने ही कांग्रेस के आंतरिक लोकतंत्र को तहस नहस कर डाला है । इनकी अफलातूनी हरकतें किसी भी सामान्य व्यक्ति को बरगला सकती हैं । ध्यान देने वाली बात ये भी है कि ऐसे ही चाटुकारों के घृणित षोध एवं अध्ययन के आधार पर ही राहुल संघ की तुलना देषद्रोही संगठन सिमी से कर बैठते हैं ।
कांग्रेस ही क्यों देष में कई ऐसे राजनीतिक परिवार हैं,जो स्वस्थ राजनीति के स्थान पर राजतंत्र की झंडा बरदारी करते नजर आते हैं । इनमें काष्मीर का अब्दुल्ला परिवार पीढि़यों से सत्ता सुख भोगता चला आ रहा है । हरियाणा का हुड्डा परिवार या समाजवाद के नाम पर वंषवाद की राजनीति करने वाले मुलायम सिंह यादव जैसे अनेकों उदाहरण आज भी मौजूद हैं ।
उपरोक्त सार े साक्ष्य ये बताने के लिए पर्याप्त हैं कि हम आज भी आजाद भारत में गुलाम नागरिक से ज्यादा कुछ भी नहीं हैं । मेरे विचारों में लोकतंत्र की सर्वश्रेश्ठ पुश्टि दुश्यंत कुमार की इन पंक्तियों में परिलक्षित होती हैः
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं ,
मेरी कोषिष है कि ये सूरत बदलनी चाहिए,
मेरे सीने में नही ंतो तेरे सीने में सही ,
हो कहीं भी आग लेकिन आग जलनी चाहिए।
ये सही भी है कि योग्यता किसी परिवार या वंष विषेश की गुलाम नहीं होती । हमारे संविधान में वर्णित लोकतंत्र तभी साकार हो पाएगा जब हम इस राजतंत्र से मुक्त हो जाएंगे ।अंततः लोकतंत्र में लोक सर्वोपरी हैं, उसके बाद ही कहीं तंत्र की बारी आती है । लोकतंत्र का नव विहान तब होगा जब सत्ता कुछ परिवारों के तथाकथित युवराजों के नियंत्रण से मुक्त हो जाएगी ।ेेेेेेेेेेेेेेेेेेेेे
                                                                                         ‘स्वतंत्र’

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