Saturday, August 25, 2012

असम हिंसा के मायने तलाषने होंगे

  • यूं तो देष में हिंसा आगजनी और रक्तपात कोई नयी बात नहीं है । इसके बावजूद असम के कोकराझार में हालिया हुई हिंसा की वजह और उद्देष्य देष के अन्य भागों में हुई हिंसक गतिविधियों से सर्वथा भिन्न हैं । बहरहाल हिंसा कहीं भी हो और कोई ये बात सर्वथा निंदनीय कही जाएगी । असम हिंसा की मुख्य वजह बांग्लादेष से लगातार हो रही घुसपैठ । इस घुसपैठ को कहीं न कहीं भारतीय राजनीति के समर्थन से इनकार नहीं किया जा सकता । इस बात में कोई दो राय नहीं कि ये समर्थन कोई और नहीं कांगेस ही कर रही है । वोट बैंक और तुश्टिकरण को सत्ता की कुंजी मानकर कांग्रेस के ये फैसले देष हित के सर्वथा विपरीत हैं । इसका खामियाजा पूरे देष समेत विभिन्न कांग्रेसी नेताओं ने भी भुगता है । कौन भूल सकता है इंदिरा गांधी व राजीव गांधी हत्याकांड को । गौरतलब है कि राजीव गांधी हत्याकांड में प्रमुख भूमिका निभाने वाले संगठन लिट्टे का पालन पोशण और प्रषिक्षण भी स्व राजीव गांधी के सानिध्य में हुआ था । वजह थी तमिलनाडू में अपनी खोई राजनीतिक जमीन तैयार करना । कुछ ऐसी की गतिविधियां आसाम में भी चल रही हैं । आंकड़ों के अनुसार देष में लगभग दो करोड़ बांग्लादेषी घुसपैठिये कब्जा जमाये बैठे हैं । सोचने वाली बात जो देष जायज रूप से भारत की नागरिकता मांग रहे पाकिस्तान से आये हिन्दुओं की मांग को अनसुना कर देता है वो देष इन देषद्रोहीयों के साथ हमदर्दी क्यों रखता है । वजह साफ है मुस्लिम वोटों का एकीकरण और सत्ता में बने रहने का तुच्छ स्वार्थ ।

मूल प्रष्न देष के भविश्य का है । लगातार बढ़ रही जनसंख्या से आजिज हिन्दुस्तान में जहां उसके मूल निवासियों का भविश्य अधर में है,इन परिस्थितियों में इन बिन बुलाये मेहमानों की प्रासंगिकता कहां तक रह जाती है? इन सारी चीजों के बीच जो सबसे जटिल प्रष्न है वो कि क्या हिन्दुस्तान के सच्चे नागरिक बन सकते हैं? जवाब हैं नहीं बांग्लादेष से आये ये घुसपैठिये स्वभावत: संविधान के बजाय षरियत से संचालित होते हैं । ऐसे में इन्हे पनाह देना क्या देष के हितों से खिलवाड़ करना नहीं है ? लेकिन अफसोस सत्ता के दोगले चरित्र का लाभ उठाकर ये पूर्णतया देष के इस भाग में काबिज हो गये हैं । हैरत की बात ये भी है कि इनमें से अधिकांष के पास राषनकार्ड और मतदाता पहचान पत्र भी है । ऐसे में अब इनकी सही पहचान करके वापस लौटाना निष्चित तौर पर दुरूह कार्य हो गया है । आसाम में धीरे धीरे ही सही अचानक इतनी बड़ी संख्या में आवक से सामाजिक ताना बाना पूर्णतया छिन्न भिन्न हो गया है । सूबे की राजनीति में सरकार बनाने में इन घुसपैठियों की प्रमुख भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है । जहां तक इन्हे वापस भेजने का प्रष्न है तो बांगलादेष की प्रधानमंत्री षेख हसीना ने स्पश्ट रूप से घोशणा कर दी है कि भारत में एक भी बांग्लादेषी अवैध रूप से नहीं रह रहा है । आए दिन देष के विभिन्न भागों में हो रहे धमाकों और हिंसा में इन्ही बांग्लादेषियों के संलिप्त होने की खबरें सुखियां बनी हुई हैं। विचारणीय प्रष्न है तालिबानी मानसिकता से प्रेरित ये लोग जब पूरे देष को आक्रांत बनाए हुए हैं तो आसाम में इन्होने क्या गुल खिलाये होंगे । वर्तमान परिदृष्य में जब पूरा विष्व इस्लामी आतंकवाद से परेषान है तो भी सत्ता स्वार्थ में उलझी कांग्रेस को भगवा आतंकवाद ही नजर आता है । विष्व के तमाम षक्ति संपन्न देष, उदाहरण के तौर पर रूस चेचेन्या से,म्यांमार बांग्लादेष से,चीन सिक्यांग से,अमेरिका तालिबान से इस्लाम प्रायोजित आतंकवाद से परेषान है तो भी कांग्रेस नीत संप्रग गठबंधन को भगवा आतंकवाद ही हिंसा का कारण नजर आता है । ऐसी विशाक्त परिस्थितियों में जब हम स्वतः अपने निरीह नागरिकों को आतंकी घोशित कर रहे हैं तो हम किस मुंह से इस्लामिक आतंकवाद की समस्या पर विष्व का ध्यान आकृश्ट करा पाएंगे ।

अब जरा आंकड़ों के आइने में असम समस्या की बात करते हैं । आसाम हिंसा को भले ही हिन्दु व मुस्लिम समुदायों के बीच संघर्श बताया जा रहा हो लेकिन हकीकत इसके सर्वथा विपरीत है । पूरे देष में अल्पसंख्यक हितों के नाम देष का षोशण करने वालों के अलावा अल्पसंख्यक और भी  हैं । इनमें से अधिकांष असम में हैं, अगर गौर करें तो पाएंगे तो असम मूलतः जनजातियों का प्रदेष है । गौर फरमाइएगा असम में रहने वाली जनजातियों में नागा 15 लाख,मीजो 10 लाख से भी कम,मणिपुर के आदिवासी 10 लाख से भी कम,खासिस और गोरोस 10 लाख के आस पास तथा बोडो जिन्हे उपद्रवी बताया जा रहा है उनकी जनसंख्या 15 लाख है । अगर इन सभी जनजातियों की पूरी जनसंख्या का योग कर लिया जाए तो इनकी संख्या एक करोड़ भी नहीं हो पाती । ऐसे में असम में निवास करने वाली जनजातियां क्या अल्पसंख्यक होने की दावेदार नहीं हैं ? इसके बावजूद इनके हितों की तिलांजली देकर सरकार ने अवैध रूप से जो घुसपैठ का समर्थन किया है ये हिंसा वास्तव में उसी का परिणाम है । जनसंख्या की वृद्धि के साथ साथ संसाधनों मंे वृद्धि तो हुई और जो संसाधन उपलब्ध भी थे उनका भी अधिकांष हिस्सा इन बांग्लादेषियों ने कब्जाना षुरू कर दिया । इसके परिणामस्वरूप लोगों मंे भीशण असंतोश पनपने लगा । इसकी अंतिम परिणीती है ये हिंसा जो प्रायोजित तो बांग्लादेषियों ने की पर इसका जवाब बोडो जनजातियों ने प्रतिहिंसा से दिया । जहां तक इन जनजातियां के हिन्दू होने का प्रष्न है तो ये बात सिवा कोरी गप के कुछ भी नहीं है । इनमें से अधिकांष जनजातियां अपने मूलस्थान और विषिश्टताओं के अनुरूप संचालित होती हैं । इसके बाद षेश बची जनसंख्या का अधिकांष हिस्सा ईसाई धर्मावलंबी हेै,तत्पष्चात स्थान आता है हिन्दुओं का जो मुट्ठी भर से ज्यादा नहीं हैं । ऐसे में इस घटना का जिम्मेदार हिन्दुओं को बताना तो सिर्फ निरी मुर्खता ही कही जाएगी । सरकार के तमाम बयानों के बावजूद उत्तर पूर्व के लोगों का देष के विभिन्न हिस्सों से पलायन करना क्या साबित करता है ? जवाब है सरकार का निकम्मापन और तुच्छ मानसिकता । ऐसे परिस्थितियों से कब तक दो चार होता रहेगा एक देष भक्त हिन्दुस्तानी? ऐसे किसी भी सवाल का जवाब षायद केंद्र सरकार के पास भी उपलब्ध नहीं हैं । मैं किसी धर्म मजहब या वाद की पैरवी नहीं कर रहा,मेरा मानना है कि देष में देषहित से बड़ा कोई हित नहीं होता। इतनी सी बात कब समझेंगे ये तथाकथित नेता । खैर ये समझें या ना समझें समझना जनता का है,क्योंकि जनता के इन बातों के समझने के बाद उसे योग्य नेता चुनने में सहायता मिल जाएगी । अंततः नजर एटवी की इन पंक्तियों पर गौर फरमाइए देष के बिगड़े सूरतेहाल पर: ‘हादसे इतने है वतन में अपने, कि लहू से छपके भी अखबार निकल सकते हैं ’।
                                       सिद्धार्थ मिश्र ‘स्वतंत्र’
         

No comments:

Post a Comment