Monday, August 27, 2012

निरूत्तर है उत्तर प्रदेष

पूरे देष में जनसंख्या के लिहाज से सबसे बड़े प्रदेष के रूप में पहचान रखने वाले उत्तर प्रदेष के दिन बहुरने का नाम नहीं ले रहे हैं । अपनी बड़ी जनसंख्या और सर्वाधिक लोकसभा सीटों के कारण राजनीतिक केंद्र कहा जाने वाला ये प्रदेष आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है । हालात ये है कि बिजली,पानी,षिक्षा और चिकित्सा जैसी बुनियादी व्यवस्थाएं भी चरमरा गई हैं । विगत बसपा सरकार की तुगलकी नीतियों से आजिज जनता ने सपा को चुनकर अपनी मुसीबतों में इजाफा कर लिया है । ये बातें किसी विद्वेश के आधार पर नहीं बल्कि प्रमाणों के आइने में और भी स्पश्ट रूप से परिलक्षित होती हैं ।
उम्र के लिहाज से देखें तो 60 वर्श के बाद की अवस्था को परिपक्वता की कसौटी कह सकते हैं । अमूूमन ज्यादातर लोग इस अवस्था तक पहुंचते पहुंचते मानसिक रूप से दक्ष माने जाने लगते हैं । इस बात को अगर प्रदेष के वर्तमान परिप्रेक्ष्य से जोड़कर देखें तो हालात कुछ और नजर आते हैं । लोकतांत्रिक तरीके से षासित होने के साठ वर्शों के बाद भी प्रदेष की राजनीति विकास केंद्रित नजर नहीं आती । इस बात की सत्यता को अगर परखना हो तो चुनाव सबसे उपयुक्त समय होता है । बीते दिनों सम्पन्न प्रदेष के विधानसभा चुनावों में प्रायः सभी दलों के चुनावी घोशणा पत्रों ने ये बात साबित कर दी है कि ,सूबे की राजनीति विकास केंद्रित न होकर धर्म,जाति और आरक्षण से प्रेरित है । चुनावों में बड़ी सफलता अर्जित करने वाली समाजवादी पार्टी के चुनावी एजेंडे पर गौर करें तेा ये बात और भी स्पश्ट रूप से समझ आ जाएगी । उदाहरण के तौर पर सपा के चुनावी घोशणा पत्र के प्रमुख बिन्दुओं पर नजर डालें ।
1: युवाओं को टैबलेट और लैपटाप देने का वादा ।
2: बेरोजगारों के लिए बेरोजगारी भत्ते का प्रावधान ।
3: मुस्लिम बेटियों को अलग से कन्याधन देने कर प्रावधान ।
4: प्रदेष पुलिस मंे मुसलामानों के लिए 18 फीसदी आरक्षण
उपरोक्त वायदों पर अगर गौर करें तेा इनमें से षायद ही किसी वायदे का प्रदेष के विकास से सरोकार है । तुश्टिकरण और अलगाववाद की राजनीति के कारण ही प्रदेष का चहुंमुखी पतन हो रहा है । अन्यथा क्या वजह है प्रदेष की दुर्दषा की ? जरा सोचिये जिस प्रदेष नेे देष को आधा दर्जन प्रधानमंत्री दिये हों क्या उस प्रदेष की ऐसी दुर्दषा लाजिमी है ?
खैर बीती बातों पर अधिक चर्चा की आवष्यकता नहीं है । विचारणीय प्रष्न है कि एक ओर प्रदेष में बिजली,सड़क पानी जैसी बुनियादी आवष्यकताओं की व्यवस्था नहीं है, तो वहीं दूसरी ओर मुख्यमंत्री बेरोजगारी भत्ता देने की बात करते हैं । क्या ये षेखचिल्ली का दिवास्वप्न नहीं है ? जरा सोचिये सूबे के युवा को लाचार बनाकर किस काम का है बेरोजगारी भत्ता । अगर प्रदेष के लिए कुछ करना चाहते हैं तो कम से कम बुनियादी जरूरतें पूरी करने का प्रयास करें । अगर इससे कुछ पैसा बच जाता है तो आगे भी अपने मनभावन मंसूबे पूरे किये जा सकते हैं । अंततः प्रदेष का आंतरिक माहौल की वहां पूंजीपतियों को पूंजी निवेष के लिए प्रेरित करता है । पूंजी निवेष का सीधा सा अर्थ है प्रदेष में रोजगार साधनों का विस्तार । युवाओं को यदि रोजगार मिलने लगेगा तो उनकी क्रय षक्ति बढ़ जाएगी,जिसका सीधा लाभ प्रदेष के बाजार पर देखने को मिलेगा । बाजार की आय से निष्चित तौर पर प्रदेष की आय बढ़ेगी और उसे कदम कदम पर दिल्ली का मुंह निहारने की आवष्यकता नहीं रह जाएगी । इसके अलावा तकनीकी षिक्षा,खेल और खिलाडि़यों को प्रोत्साहन जैसे अनेकों कार्य है जों वर्शों से सरकार की नजरे इनायत का इंतजार कर रहे हैं । मगर अफसोस बीते कई वर्शों से प्रदेष रचनात्मक कार्यों के बजाए विध्वंसक गतिविधियों का गढ़ बना हुआ है ।
इस दिषा में बहुत दूर जाकर प्रेरणा लेने की आवष्यकता नहीं है,अपने इर्द गिर्द बसे बिहार और मध्य प्रदेष  से भी प्रेरणा ली जा सकती है । विकास यात्रा में बहुत पिछड़े माने जाने वाले मध्य प्रदेष और बिहार ने बीते दस सालों मंे जो उन्नती की है उसके नतीजे अब सामने हैं । सड़क बिजली और पानी कहने को सामान्य सी बात है जिसका रोना प्रायः हर आम आदमी रोता है । फिर भी सरकार चला रहे समाजवादी युवा को ये बातें कौन समझाए । यहां समाजवाद का प्रयोग करने का विषेश प्रयोजन है, क्योंकि षायद सपा का समाज परिवार से ही पूरा हो जाता है । जरा याद करें अखिलेष जी के मुख्यमंत्री चुने जाने के बाद रिक्त हुई लोकसभा सीट पर संपन्न हुए उपचुनाव । इन चुनावों मंे दो बातें खुलकर सामने आईं पहली तो विपक्ष का दयनीय समर्पण और दूसरी बात मुख्यमंत्री का डिंपल के पक्ष मंे सभा का संबोधन । सोचने वाली बात है लोकसभा चुनावों में बुरी तरह पराजित होने वाली डिंपल की लोकप्रियता का ग्राफ कुछ ही दिनों मंे अपने चरम पर कैसे पहंुच गया । उनकी विषेश सामाजिक स्वीकार्यता के मायने क्या हैं ? सीधी सी बात है मंच से प्रदेष के मुख्यमंत्री का आष्वासन विकास होगा । अक्सर देखा जाता है विकास का मुद्दा अक्सर ही केंद्र और प्रदेष सरकार के मनमुटाव के बीच पिस जाता है । बतौर मुख्यमंत्री क्या अखिलेष को ऐसी किसी भी चुनावी सभा में जाना चाहिए था ? प्रदेष ऐसे धुर परिवारवादी मुख्यमंत्री से विकास की क्या अपेक्षाएं रख सकता है ? जवाब आपको हमें और प्रदेष के समस्त मतदाताओं को ढ़ूंढ़ना होगा ।
समाजवाद की साइकिल पर सवार युवा को मुख्यमंत्री भवन तक पहुंचाने में षायद प्रदेष के हर वर्ग के लोगों का योगदान रहा है । लोगों में हर्श था कि षायद अखिलेष प्रदेष को उत्तम प्रदेष में तब्दील कर दें । जनता की ये उम्मीदें उनके षपथ ग्रहण समारोह के बाद ही काफूर हो गई । वजह साफ थी अखिलेष को छोड़कर उनके मंत्रीमंडल में लगभग कोई नया चेहरा देखने को नहीं मिला । इन चेहरेां में राजा भईया,आजम खां और षिवपाल सिंह के विषेश येागदान को कौन भुला सकता है ? अंततः जिसका डर था हुआ भी वही सपा सरकार में बाहुबलियों की बांछे छिल गईं । विजय मिश्र,मुख्तार अंसारी जैसे नेता खुलेआम भोज के नाम पर मलाई काटने लगे तो अमरमणी त्रिपाठी चिकित्सा के नाम पर खुलेआम यहां वहां विचरने लगे । ऐसे मंत्रियों से घिरे नेता से विकास की क्या उम्मीद की जा सकती है । हुआ भी ठीक यही,कभी मुख्यमंत्री ने बिजली व्यवस्था को सुधारने के नाम पर दुकानें षाम सात बजे तक बंद करने का तुगलकी फरमान जारी किया तर्क था प्रदेष बिजली बोर्ड की दयनीय दषा तो दूसरी ओर विधायकों को विधायक निधि से बीस लाख रूपये मूल्य की लक्जरी गाडि़यों खरीदने की छूट । हांलाकि विपक्ष के विरोध के बाद प्रदेष सरकार को ये दोनो फैसले वापस लेने पड़े । बात यहीं थम जाती तो फिर भी गनीमत थी लेकिन मं़त्रीगण हैं कि मानते नहीं । अभी हाल ही में माननीय मंत्री षिवपाल जी ने बैठक में अधिकारियों को थोड़ी थोड़ी चोरी करने की हिदायत भी दे डाली । हालात तब और बिगड़ गए जब मीडिया ने ये फुटेज बार बार रिपीट कर दिखाये । बाद में मंत्री जी ने सफाई भी दी मीडिया ने कंटेट को तोड़ मरोड़ कर जारी किया है । इतनी फजीहत के बाद प्रदेष के मतदाताओं की समझ में ये बात आ गई है उन्होने भस्मासुर को मनोवांछित वर दे दिया है । इन सभी प्रकरणों मंे हो रही प्रदेष की दुर्दषा से सचमुच निरूत्तर है उत्तर प्रदेष । सूबे के इस हाल को देखते हुए मुझे चंद पंक्तियां याद आ रही हैं जो पेषे खिदमत हैं: बरबाद गुलिस्तां करने को बस एक ही उल्लू काफी है, अंजामे गुलिस्तां क्या होगा जहां हर षाख पे उल्लू बैठा है ।
                                         सिद्धार्थ मिश्र‘ स्वतंत्र’

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