Monday, October 22, 2012

बहलाना नहीं सहलाना सीखे सरकार: सिद्धार्थ मिश्र‘स्वतंत्र’

एक लोकतांत्रिक देश की सरकार के दायित्व क्या होते हैं ? शायद हमारे विद्वान प्रधानमंत्री को इस बात का भी कोई अनुमान नहीं है । अगर होता तो विगत दस वर्षों में वे सिर्फ मदारी का खेल दिखाने की बजाय विकास परक योजनाएं बना चुके होते । वास्तव में जनता की समस्याएं को हल करने के लिए शब्दों की लफ्फाजी के बजाय कड़े निर्णयों आवश्यकता होती है। चूंकि सौभाग्य से हमारे प्रधानमंत्री जी अर्थशास्त्री भी बताये जाते हैं,तो क्या वो भूल गये हैं अर्थशास्त्र के बुनियादी उपकरण? ये उपकरण है रोटी,कपड़ा और मकान इनके साथ ही शिक्षा और चिकित्सा की सुदृढ़ सेवाएं । ध्यान दीजियेगा मनमोहन जी की नीतियों को देखकर अनेकों सवाल उठ खड़े होते हैं । अब इस सरकार ने एक नया पटाखा फोड़ा है,हर हाथ मे फोन । योजना में कुल 7000 हजार करोड़ के व्यय होने की उम्मीद है । जरा सोचिये जिस देश में आम आदमी को बिजली तक मयस्सर नहीं है तो वहां ऐसी योजनाओं की क्या प्रासंगिकता है ? अभी हाल ही में भारत सरकार ने तिजोरी खाली होने का दावा करने के बावजूद विज्ञापनों पर कुल सौ करोड़ रूपये खर्च कर डाले । आशा था अपने कार्यकाल में हो रहे भारत निर्माण को दर्शाना ।किस भारत का निर्माण हुआ है? हमारे आस पास के गांव,कस्बों में रहने वाले भारत का या महानगर की झुग्गियों में बसने वाले भारत तक तो निर्माण कहीं नहीं दिखता । अगर आपके आस पास कहीं भारत निर्माण हो रहा हो तो जरूर बताइयेगा । हां सरकार के पालतु लोगों का बैंक बैंलेंस अगर रातों रात अरबों खरबों तक पहुंच जाने को भारत निर्माण कहते हैं तो अवश्य ही ये निर्माण हम सभी देख और सुन रहे हैं ? कैसी विडंबना है देश की एक घोटाला अभी खत्म भी नहीं हो पाता कि तब दूसरे लगभग उसके दोगुने आकार का घपला आकार ले लेता है ? जहां तक आम आदमी का प्रश्न है तो उसके पास पुराने मामले को भूलने के अलावा दूसरा कोई और विकल्प नहीं होता । अब सोचने वाली बात है कि 7000 करोड़ की इस प्रस्तावित चुनावी योजना से कितने कि डकैती होने वाली है ? ये मामला भी अगर पकड़ में आया तो फिर कोई और येाजना पर सरकार का अंतरिम तो लोकतंत्र को चूना लगाना ही हो गया है । वो भी अपने सगे संबंधियों की पूरी फौज के साथ । इस परिस्थिति में मेरा मनमोहन जी से सविनय अनुरोध है कि सिलेंडर का दाम घटा बढ़ाकर या एफडीआई के पिटे सिद्धांतों से रातों रात कोई चमत्कार नहीं होगा । हां अगर कोई चमत्कार होगा तो बुनियादी समस्याओं को समझकर उसका निराकरण करने से । इसका उदाहरण लेने के लिए आप आक्साफोर्ड मत जाइये यहीं भारत में एक बार नरेंद्र मोदी से उनके विकास माडल के बारे में जानने की कोशिश करीये,क्योंकि भारतीय लोकतंत्र की खुशहाली विदेशी शासन व्यवस्था से बहाल नहीं होगी । अतः अब सरकारेां को जनता को बहलाने की बजाय सहलाना सीखना होगा । अन्यथा इस अफरातफरी से आजिज आ चुके हताश आ चुके आम आदमी के पास क्रांति के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचेगा । अब ये बात मैं निश्चित तौर पर कह सकता हूं कि भारत निर्माण की वास्तविक क्रांति हमारे मानस पटल पर दिन रात दस्तक दे रही है । अंततः
कैसी है य त्रासदी कैसा है संयोग,लाखों मंे बिकने लगे दो कौड़ी के लोग

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