Tuesday, October 23, 2012

भ्रष्टाचार का वास्तविक जिम्मेदार कौन ? सिद्धार्थ मिश्र‘स्वतंत्र’

इन दिनों राजनीति अपने न्यूनतम स्तर को छू रही है । इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कांग्रेसी दिग्गजों के बेशर्म बयान । ध्यान दीजियेगा अरविंद केजरीवाल द्वारा कांग्रेसी दामाद राबर्ट का मुद्दा उठाये जाने के बाद वास्तव में प्रत्येक कांग्रेसी खुद को असहज अवस्था में पा रहा है । इसका जीवंत प्रमाण है सलमान खुर्शिद,दिग्विजय सिंह और अन्य तथाकथित नेताओं के सतही बयान । ये बयान वास्तव में खिसियानी बिल्ली के खंभा नोंचने वाली कहावत को चरितार्थ करते हैं । ध्यातव्य हो इस तरह के बयान वास्तव में लोगों का ध्यान मुद्दे से भटकाने के उद्देश्य से ही दिये जाते हैं । ऐसे में दिग्विजय सिंह के मानसिक दिवालियेपन को आसानी से समझा जा सकता है । उन्होने हाल ही में कहा कि सोनिया राबर्ट की चार्टड अकांउटेंट नहीं  है । सही भी है लेकिन समझने वाली बात ये है कि सोनिया माइनों गांधी वास्तव में हैं क्या और उन्हे क्या समझा जाता है ? क्या वो भारत माता है जो पूरा देश अपने दामाद को दहेज में देने पर आमादा हैं ? और उनके ये दामाद राबर्ट जी क्या देश के प्रधानमंत्री हैं जो हवाई अड्डों पर उनकी चेकिंग नहीं की जानी चाहिए ?
बहरहाल क्या होता अगर होता अगर राबर्ट सोनिया के दामाद न होते । अनेकांे उदाहरण हैं नरेंद्र मोदी या स्वामी रामदेव जिनकी ईंट से ईंट बजाने में सीबीआई ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी । ऐसे में तो हरियाणा सरकार द्वारा चलाई जा रही जांच को देखकर तो सिर्फ यही कहा जा सकता है कि सोनिया का रोबोट वास्तव में देश और संविधान से भी बड़ा है । इस पर दिग्विजय का तुर्रा कि उनके पास भाजपा के खिलाफ भी सबूत हैं । अगर किसी देशहित को ताक पर रखकर परिवार को बढ़ावा दिया है तो निश्चित तौर पर वो सजा का अधिकारी फिर वो चाहे भाजपाई हो अथवा कांग्रेसी,क्योंकि देश निश्चित तौर पर इन दोनो पार्टियों से बड़ा है। अगर ऐसे कोई भी साक्ष्य दिग्गी राजा ने छुपा रखे हैं तो ये भी देश द्रोह की श्रेणी में ही आयेगा  । खैर हमारे दिग्गी राजा के प्रशंसक उन्हें यू हीं डागी राजा नहीं कहते । अतः अपनी भूमिका के साथ पूरा न्याय करते हुए उन्होने केजरीवाल से भी कौन बनेगा करोड़पति की तर्ज पर 27 प्रश्न पूछ डाले ? यथा इन प्रश्नों के उत्तर मात्र से लोकतंत्र का भला हो जायेगा ।  गौर करीयेगा उनमें से एक प्रश्न था भारतीय राजस्व सेवा सर्विस के दौरान केजरीवाल और उनकी पत्नी दिल्ली से बाहर से क्यों नहीं गए ?शैक्षणिक अवकाश से आने के उपरांत उन्होने अपना शोध सरकार को क्यों नहीं सौंपा ? जरा सोचिये क्या ये भी कोई पूछने वाले सवाल हैं ? मासूम दिग्गी को ये सवाल तो अपने आकाओं से पूछने चाहिए कि उन्होने केजरीवाल दंपत्ति के  साथ ये सदाशयता क्यों बरती । ये सवाल वास्तव में कीचड़ उछालने से ज्यादा कुछ नहीं है जिनका उद्देश्य पूरे देश का ध्यान असल मुद्दे से भटकाने के अलावा कुछ और नहीं है । खैर ये बात यहीं थम जाती तो कोई बात नहीं थी लेकिन इस प्रकरण में कुछ अन्य कांग्रेसी दिग्गज भी भला अपनी वफादारी साबित करने से पीछे क्यों हट जाते । अतः अपनी वफादारी साबित करने के क्रम में सलमान खुर्शिद ने जहां केजरीवाल को चिंटी बताया तो बुढ़ापे से जवानी की ओर लौट रही शीला ने उन्हे बरसाती मेंढ़क करार दे दिया । विचारणीय प्रश्न है कि इस तरह से बचकाने बयानों से क्या साबित किया जा रहा है ? या दिग्गी ने थाती के तौर पर जो प्रमाण भाजपा या केजरीवाल के विरूद्ध संभाल के रखे उनसे कांग्रेसी सरकार पर लगे भ्रष्टाचार के दाग मिटाये  जा सकते हैं ? या ये साबित किया जा सकता है कि भाजपा ने अपने लगभग छः वर्षों के शासन में कांग्रेस के साठ वर्षों के शासन की संरक्षित विरासत को डूबा दिया ? अतः आप सभी वरिष्ठ जनों से करबद्ध प्रार्थना है कि ये बचकानी बातें बंद करें क्योंकि अब भ्रष्टाचार के जिम्मेदारों की वास्तविक पहचान हो चुकी है ।

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